



पिता का कोई दिन नही होता
पिता से ही दिन होता है
*”मदर्स डे और फ़ादर्स डे” के चोंचले*
(एक बार जरूर पढ़ें मन कि बात)????
Sunil malviya
हमारा धर्म हमारी संस्कृति हमे यही शिक्षा देता है कि हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता पिता हि है और
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
सन्तों ने जगत में गुरु को ही सर्वश्रेष्ट माना है । गुरु भक्तों के एक मात्र हितैषी हैं, वे सब कुछ करने वाले हैं, बिना उनकी कृपा के कुछ भी नहीं होने वाला है। गुरु के अतिरिक्त किसी और पर भरोसा करने वाला भक्ति प्राप्त नहीं कर सकता।
लेकिन आज ज्यादातर देखने मे आ रहा है कि आधुनिकता कि दौड मे लोग अपनी संस्कृती को छोड विदेशी कल्चर अपना रहै है
विदेशो मे ज्यादातर महिलाए 2 या तीन शादी करती है और वहाँ के पुरुष भी। इसलिए उनकी संताने 14 पंद्रह सालों के बाद से ही अलग रहने लगती है।
और उनके जैविक माता पिता तो अपनी-अपनी अलग अलग जिंदगी जीते है।
इसलिए वहाँ पर बच्चे साल में एक बार अपने माता याँ पिता से मिलने जाते है।
लेकिन उनके माता पिता तो उनके साथ में रहते नहीं है।
इसलिए वहाँ माता को मिलने का अलग दिन निर्धरित किया जाता है तो *मदर्स डे*
और उसी तरह पिता से मिलने का भी अलग दिन। *फ़ादर्स डे *
जो इस प्रकार से मदर्स डे, एवं फादर्स डे के नाम से जाने जाते है। भारत में हम बच्चे अपने माता और पिता के साथ ही रहते है और वो दोनों भी पूरी जिंदगी अपने बच्चों के साथ रहते है।इसलिये यहाँ हर दिन माता पिता का ही है।उन्हें साल के एक दिन की जरुरत नहीं है।
माँ को याद करने के लिए किसी “मदर डे” यां ” फ़ादर्स डे” की जरुरत नहीं है ,
हिन्दू धर्म में तो *माँ के कदमो में ही स्वर्ग* बताया गया है।
यह -मदर डे यां फ़ादर्स डे के चोचले- तो उनके लिए है जो
साल में एक बार अपनी माँ यां पिता को याद करते है
हमारी *संस्कृति* में सुबह घर से निकलते वक्त पहले *माँ बाप के पाँव*छूने की परम्परा है। इसलिये हर दिन *मातृ और पितृ दिवस* मनाये।
*सर्व तीर्थमयी माता, सर्वदेवमय पिता!*
*मातरम-पितरम तस्मात, सर्वयत्नेन पूज्येत..!!*
*हरे कृष्णा* हरि हरि बोल