800 फीट ऊंचाई पर और 80 फीट चौड़ी खाई से घिरा है भारत का (जिंजी किला)अभेद्य दुर्ग।

Karan Carole

जिंजी, विजयनगर साम्राज्य (लगभग 1347-1642) के हिंदू शासकों ने लगभग एक दुर्गम किले का स्थल बनवाया था। यह भारतीय राज्य तमिलनाडु में चेन्नई (मद्रास) से लगभग 80 मील (130 किमी) दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।

जिंजी दुर्ग या सेंजी दुर्ग तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले में पुद्दुचेरी के पास स्थित है।लेकिन इसकी विचित्र निर्माण शैली आज भी इसके गौरवशाली इतिहास को बयां करती है।वर्तमान में इस किले का काफी हिस्सा अब टूट-फूट गया है।

हमारे देश में ऐसे किले मौजूद है जो सदियों से अपने इतिहास की कहानियों को बयां कर रहे हैं. इसी कड़ी में आज हम आपको देश के ऐसे किले के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसे छत्रपति शिवाजी ने भारत का सबसे ‘अभेद्य दुर्ग’ कहा था.

800 फीट ऊंचाई पर बना है किला और दुश्मन से बचाती है 80 फीट चौड़ी खाई 

 

800 फीट की ऊंचाई पर बने इस किले को 1190 में कोणार राजवंश के राजा अनंद कोण द्वारा बनाया गया था। बाद में कृष्ण कोणार ने इसमें सुधार करके इसे और सुदृढ़ बनाया और कई निर्माण जोड़े। 13वीं शताब्दी तक इसमें कई बदलाव होते रहे। यह किला इस प्रकार निर्मित है कि यहां तक दुश्मन का पहुंचना बहुत ही मुश्किल था और इससे सेंजी नगर की सुरक्षा भी होती थी। छत्रपति शिवाजी ने इस किले को भारत का सबसे ‘अभेद्य दुर्ग’ कहा था क्योंकि दुश्मन के लिए यहां तक पहुंचना मुश्किल होता था।

सामरिक दृष्टि से इस किले के निर्माण में उस समय के शासकों ने तकनीक का खास ख्याल रखा था। अद्भुत निर्माण शैली और योजना के साथ तीन पहाड़ी टीलों पर बने इस किले पर समय-समय पर अलग-अलग शासकों का नियंत्रण रहा। 1677 में शिवाजी के नेतृत्व में यह किला मराठाओं के अधीन रहा। कर्नाटक के नवाब मुगल सुल्तान के अधीन भी इस किले की सत्ता रही और फिर फ्रेंच और ब्रिटिश लोगों के अधीन 1761 में इस किले की कमान रही।

किले के अंदर आने से पहले दुश्मन के हौंसले को पस्त करती ऊंचाई थी  और डराती 80 फीट चौड़ी खाई  दुश्मन को डराती थी

 

इस किले को 800 फीट कि ऊंचाई और किले के आसपास 80 फीट चौड़ी खाई भी इसको सुरक्षा प्रदान करती है। दुश्मन को किले पर आक्रमण से पहले इस खाई को पार करने के बारे में योजना बनानी पड़ती थी। किले में ही 7 मंजिला कल्याण महल भी मौजूद है। किले के अंदर ही दुश्मन सैनिकों के लिए जेल भी मौजूद है। युद्ध में बंदी बनाए कैदियों को यहां रखा जाता था।

1921 में राष्ट्रीय स्मारक के रूप में भी मिली थी ख्याति 

किले के मंदिर उस समय के शासकों की आस्था के प्रमुख स्थान थे। इस किले को 1921 में राष्ट्रीय स्मारक के रूप में भी ख्याति मिली है। यहां इस किले को देखने के लिए देश-विदेश से सैलानी आते हैं।

कई शासकों का रहा कब्जा

आपकी जानकारी के लिए के लिए बता दें कि यह किला लगभग 11 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है, जिसकी दीवारों की लंबाई लगभग 13 किलोमीटर है. इसका मुख्य आकर्षण राजगिरि है, जहां एक पिरामिडनुमा शीर्ष से सजी बहुमंजिला कल्याण महल है. इसके अलावा राजगिरि पहाड़ी के निचले हिस्से में महल, अन्नागार और एक हाथी टैंक भी है.

तत्कालीन समय में जिंजी फोर्ट की वास्तुकला बेहद महत्पूर्ण मानी जाती थी। यह अद्भुत फोर्ट का मुख्य परिसर तीन पहाड़ियों पर स्थित है, जिसे कई लोग कृष्णागिरी, राजगिरी और चंद्रयानगिरी पहाड़ के नाम से जानते हैं।

जिंजी फोर्ट की वास्तुकला (Architecture of Gingee fort)

कहा जाता है कि इस फोर्ट का निर्माण कुछ इस तरह किया गया था कि दुश्मन भी इस फोर्ट पर हमला करने से पहले कई बार सोचता था। इस फोर्ट का मुख्य आकर्षण पिरामिड जैसा बना एक बहुमंजिला इमारत है। इस फोर्ट परिसर में मंदिर, बैठने के लिए हॉल, खाद्य भंडार, मस्जिद और घंटाघर जैसी इमारतें मौजूद हैं।

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