मांडर विधान सभा उपचुनाव परिणाम: कांग्रेस से हार के बाद भी भाजपा ने ढूंढी खुश होने की वजह

रांची. मांडर का मैदान मारने के साथ झारखंड की महागठबंधन सरकार ने उपचुनाव में जीत का चौका जड़ दिया है. शिल्पी नेहा तिर्की की इस जीत के साथ 22 साल बाद मांडर सीट पर कांग्रेस की वापसी हुई है. ऐसे महागठबंधन का उत्साहित होना लाजिमी है. आय से अधिक संपत्ति मामले में सदस्यता गवाने के बाद बंधु तिर्की अपने बेटी को चुनाव जीतने में सफल रहे. मांडर की जनता ने भी कांग्रेस के चुनाव प्रचार का समर्थन करते हुए बन्धु तिर्की पर लगे भ्र्ष्टाचार के आरोप को एक तरह से खारिज कर दिया. दूसरी ओर भाजपा इस हार पर आत्मंथन करने में जुट गई है, मगर एक बात ऐसी भी है जिससे वह खुश भी हो रही है.

मांडर उपचुनाव में जीत के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर और जे एम एम के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडेय ने इस जीत को हेमंत सोरेन सरकार के काम-काज पर जनता की मुहर बताया है. महागठंबधन का मानना है कि झूठ, प्रपंच और षड्यंत्र का जवाब मांडर की जनता ने वोट की चोट से दे दिया है. एक तरफ कांग्रेस और जेएमएम खुश है तो भाजपा हार पर मंथन कर रही है.

मांडर में भाजपा की मुश्किलें

दरअसल, एक सच यह भी है कि मांडर विधानसभा सीट हमेशा से ही बीजेपी के लिये चुनौतीपूर्ण रही है. साल 2014 के परिणाम की बात छोड़ दें, तो बीजेपी हमेशा ही यहां पिछड़ती रही है. हालांकि, इस बार बीजेपी ने खास रणनीति बनाई थी. बड़े नेताओं के चुनाव प्रचार से लेकर ओवैसी कार्ड पर बीजेपी को काफी उम्मीद थी, लेकिन परिणाम फिर एक बार बीजेपी के अनुकूल नहीं रहा.

…फिर क्यों खुश है भाजपा?

अब बीजेपी के नेता इस हार के बाद आत्ममंथन में जुट गई है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश के अनुसार चुनावी राजनीति के इतिहास में पहली बार बीजेपी को इतने वोट मिले हैं. मांडर के सामाजिक समीकरण पार्टी के अनुकूल नहीं है, फिर भी जनता का समर्थन बीजेपी को मिला है. इस समर्थन के बूते बीजेपी राज्य सरकार की नाकामियों के खिलाफ लड़ाई लड़ती रहेगी.

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